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Hatke News: भारत में है दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष, इंद्रलोक से आया परिजात वृक्ष

by PPSINGH
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भारत में है दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष

Hatke News: भारत में है दुनिया का सबसे पुराना वृक्ष, इंद्रलोक से आया परिजात वृक्ष

भारत में एक ऐसा पेड़ है जिसकी उम्र 5000 वर्ष से भी ज्यादा है। यह पेड़ कोई साधारण पेड़ नहीं बल्कि इंद्रलोक, यानी स्वर्ग से लाया गया है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किंतूर गांव में परिजात का एक प्राचीन वृक्ष है। इसे हेरिटेज वृक्ष का दर्जा मिला हुआ है। यह अपने तरह का दुनिया का अकेला वृक्ष है और इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “मनोकामना पूरा करने वाला वृक्ष”। किवदंती है कि इसे भगवान खुद स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे। एक मान्यता यह भी है कि अर्जुन इसे अपनी माता के लिए स्वर्ग से लाए थे। इसे परिजात वृक्ष भी कहते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस वृक्ष का दर्शन करना शुभ माना जाता है। इस पेड़ पर साल में केवल एक महीने ही फूल आते हैं। मान्यता है कि सफेद रंग के इन फूलों को भगवान शिव को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं।

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रहस्यमयी है ‘परिजात वृक्ष’

परिजात वृक्ष के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी आयु 5000 साल तक है। इसकी एक खास बात यह है कि इसकी शाखाएं सूखती नहीं हैं बल्कि पुरानी शाखाएं सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती हैं। यह वृक्ष लगभग 50 फुट की गोलाई में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई 45 से 50 फुट है। किंतूर गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर पड़ा है। इस वृक्ष में हर साल जून और जुलाई महीने में सफेद फूल आते हैं, जो सूखने पर सुनहरे हो जाते हैं। यह फूल रात में खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं। इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है।

औषधीय गुण से युक्त है यह वृक्ष

पारिजात वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके बीज का सेवन करने से बवासीर रोग ठीक हो जाता है। इसके फूल हृदय रोग को ठीक करने में कारगर माने गए हैं। आयुर्वेद में इस वृक्ष के पुष्प, पत्तियों और बीज के फायदों का वर्णन मिलता है। त्वचा रोग के लिए इसकी पत्तियां उपयोगी मानी गई हैं।

इसलिए नहीं आते इस पेड़ पर फल

एक कहानी के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ थे तभी नारद मुनि परिजात का पुष्प लेकर आए और रुक्मिणी को दे दिया। रुक्मिणी ने इसे अपने बालों में लगा लिया। पुष्प को देखकर उनकी दूसरी पत्नी सत्यभामा ने पूरे परिजात पेड़ की मांग की। भगवान कृष्ण ने इंद्र से परिजात का पेड़ देने का अनुरोध किया, लेकिन इंद्र ने मना कर दिया। इसके बाद युद्ध हुआ और इंद्र पराजित हुए। अंततः इंद्र को परिजात का पेड़ सत्यभामा को देना पड़ा। इसके बाद यह वृक्ष धरती पर आ गया। इंद्र ने इसे फल से वंचित रहने का श्राप दिया, इसलिए इस वृक्ष में फल नहीं आते।

पहला पुष्प भगवान शिव को किया अर्पित

परिजात वृक्ष से जुड़ी एक और पौराणिक कथा है। समुद्र मंथन से परिजात वृक्ष निकला था जिसे इंद्र स्वर्ग ले गए। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश पर अर्जुन इसे पृथ्वी पर लाए। महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती को भगवान शिव ने स्वर्ग के समान दिखने वाले पुष्प को अर्पित करने को कहा था। इस वृक्ष के पुष्प को जब कुंती ने भगवान शिव को अर्पित किया तो शिव ने महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया। वर्ष में एक महीने ही परिजात वृक्ष में पुष्प आते हैं, खासकर सावन के महीने में।

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